स्वास्थ्य बीमा अलर्ट: हॉस्पिटल में भर्ती हैं, बीमा का दावा खारिज हो गया? ये चूक भारी पड़ेंगी
स्वास्थ्य बीमा: आखिर क्या वजहें हैं कि ऐन वक्त पर स्वास्थ्य बीमा रिजेक्ट हो जाते हैं. ऐसे समय में जब बीमा पॉलिसीधारकों को स्वास्थ्य बीमा से मिलने वाले लाभ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वह इसके फायदों से महरूम रह जाते हैं. हाल ही में लोकलसर्किल ने एक सर्वे किया. देश के 302 जिलों में हुए इस सर्वे में 39 हजार लोगों को शामिल किया गया. इस सर्वेक्षण में पाया गया कि पिछले तीन वर्षों में कुल मिलाकर 43 प्रतिशत बीमा पॉलिसीधारकों को अपने हेल्थ बीमा दावों को अवेल करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.
जिन लोगों पर सर्वे किया, उनमें से 67 प्रतिशत पुरुष थे जबकि 33 प्रतिशत महिलाएं थीं. इनमें से 46 प्रतिशत टियर 1 से, 32 प्रतिशत टियर 2 से और 22 प्रतिशत टियर 3, 4 और ग्रामीण जिलों से थे. कई बार तो यह हुआ कि पेशेंट को क्लेम मिलने में इतना वक्त लग गया कि पेशेंट ने इस बाबत कोई बहस या कोशिश ही रोक दी. इनमें से कई बार लोगों ने यथासंभव अस्पताल से छुट्टी लेना बेहतर समझा, क्योंकि यदि वे हॉस्पिटल में बने रहते तो तमाम खर्च उन्हें वहन करने पड़ते.
पॉलिसी ली है तो इन बातों का रखें ध्यान…
इंश्योरेंस समाधान की सह संस्थापक और सीओओ शिल्पी अरोड़ा कहती हैं कि बीमा करवाने वाली कंपनियां कई बार शब्दजाल और कंफ्यूज करने वाली कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें के चलते कई बार कवरेज और पहले से मौजूद स्थितियों पर विवाद हो जाता है. लोकलसर्किल्स की यह रिपोर्ट जमीनी चुनौतियों की ओर इशारा करती है. वह कहती हैं कि इंश्योरेंस पॉलिसी को पूरी तरह से समझने में यह शामिल है कि क्या इसमें शामिल नहीं है. अपने मेडिकल डॉक्युमेंट्स और पॉलिसी के सभी दस्तावेज की एक फाइल बनाकर संभाल कर रखें ताकि जब आप क्लेम करेंगी तो प्रोसेसिंग जल्दी हो और बिना रुके हो.
पॉलिसीधारक अपने दावे तुरंत दर्ज करें. देरी के कारण अस्वीकृति से बचने के लिए बीमा कंपनी को जल्द से जल्द सूचित करें. हेल्थ बीमा पॉलिसी खरीदते समय विवादों को रोकने के लिए पहले से मौजूद कंडिशन के बारे में ट्रांसपेरेंसी जरूरी है. क्योंकि कई बार आपके क्लेम को लेकर जो रिजेक्शन होता है, या फिर देरी होती है तो इसका यह प्रमुख कारण होता है.
पॉलिसी के नेटवर्क के अस्तपतालों की अपडेटेड सूची हो आपके पास…
किसी भी विवाद से बचने के लिए आपको अपनी पॉलिसी में नेटवर्क अस्पतालों का भी पता लगाना चाहिए और उनमें इलाज करवाना चाहिए. बीमाकर्ता कई बार किसी अस्पताल को ‘ब्लैक लिस्टेड’ कर चुका होता है. इसलिए अपडेटेड लिस्ट से अवेयर रहें. अस्पताल के टीपीए डेस्क के संपर्क में रहें और यदि बीमाकर्ता को कोई आपत्ति हो तो आपको पता होना चाहिए. आपके दस्तावेजों में गड़बड़ होने पर भी देरी या रिजेक्शन होना चाहिए.
IRDAI हुआ है सख्त, बीमा कंपनियां हुईं हैं ज्यादा सतर्क
बीमा कंपनियों से किए गए दावों पर विस्तृत मासिक रिपोर्ट को खुलासा करने का निर्देश IRDAI का था जिससे बीमाकर्ताओं की जवाबदेही बढ़ी है. इससे दावों को मनमाने ढंग से रिजेक्ट करने या पॉलिसी रद्द करने से पहले कंपनी कई बार सोचेगी.Health Insurance: कितने लाख रुपये तक का फायदा मिलेगा और आपकी बीमा पॉलिसी उठाएगी आयुष इलाज का खर्च? आप हर सवाल का जवाब जानते हैं।