Saturday, September 21, 2024
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जन्माष्टमी दही हांडी दिवस (27 अगस्त 2024) पर विशेष-

(जन्माष्टमी दही हांडी दिवस (27 अगस्त 2024) पर विशेष-

निरसा मनोज कुमार सिंह

श्री कृष्ण की लीलाओं का गुरवाणी में आध्यात्मिक मर्म
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श्री कृष्ण की लीलाएं भारतीय मनीषा में एक गहरी आध्यात्मिक धारा का संचार करती हैं। श्री कृष्ण का जन्म, बाल लीलाएं, युवावस्था में रासलीला, और अंततः महाभारत के युद्ध में उनकी भूमिका! ये सभी प्रसंग धर्म और आध्यात्मिकता के जटिल ताने-बाने को उभारते हैं। उनकी लीलाएं सिर्फ घटनाओं का क्रम नहीं हैं, बल्कि वे आत्मज्ञान, प्रेम, और भक्ति का गहन संदेश देती हैं। कृष्ण की माखन चोरी की लीला को ही लें। यह केवल एक बालक का शरारती कार्य नहीं है, बल्कि यह माया और सत्य के बीच का संवाद है। माखन, जो जीवन का सार है, को चोरी कर लेने का अर्थ है कि भगवान हमें जीवन के सार से परिचित करा रहे हैं। श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाना धर्म की स्थापना का प्रतीक है। वे संदेश देते हैं कि ईश्वर की शरण में आने वाले भक्तों को कभी भी किसी भय का सामना नहीं करना पड़ता। रासलीला एक और महत्वपूर्ण लीला है, जहां कृष्ण गोपियों के साथ नृत्य करते हैं। इस लीला में प्रेम, भक्ति, और ईश्वर के प्रति समर्पण की पराकाष्ठा को दर्शाया गया है।

महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण का अर्जुन को दिया गया उपदेश, जिसे हम ‘भगवद्गीता’ के रूप में जानते हैं, आत्मा, कर्म, और धर्म के गहनतम रहस्यों को उजागर करता है। गीता के उपदेश में श्री कृष्ण ने मानव जीवन की समस्याओं का समाधान बताया और यह भी सिखाया कि कैसे एक इंसान अपने जीवन में धर्म के मार्ग पर चल सकता है?
गुरुवाणी में श्री कृष्ण की लीलाओं का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है, सिख धर्म का प्रमुख ग्रंथ ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ है, जिसमें श्री कृष्ण और उनके कार्यों का उल्लेख अनेक वाणियों में मिलता है। गुरुवाणी में ईश्वर के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है, जिनमें श्री कृष्ण का भी स्थान है। सिख धर्म में ईश्वर को निरंकार, अजनमा, और अकाल पुरुष के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसके बावजूद श्री कृष्ण जैसी विभूतियों की लीलाओं का जिक्र हमें गुरुवाणी में मिलता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में श्री कृष्ण का उल्लेख कई स्थानों पर हुआ है। उन्हें भगवान के एक अवतार के रूप में देखा जाता है जो संसार के कल्याण के लिए अवतरित हुए। श्री कृष्ण की लीलाओं को गुरुवाणी में आत्मज्ञान का प्रतीक माना गया है। उदाहरणस्वरूप, गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में श्री कृष्ण के द्वारा गीता में दिए गए उपदेश का भी उल्लेख किया है। उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का मार्ग दिखाया और सिखाया कि धर्म के मार्ग पर चलने के लिए आत्मा की शक्ति की आवश्यकता होती है।

गुरुवाणी में श्री कृष्ण की लीलाओं को एक दिव्य योजना का हिस्सा माना गया है। उनका जन्म, उनके कार्य और उनके उपदेश सभी ईश्वर की माया का खेल हैं, जिन्हें समझने के लिए आत्मा की दृष्टि की आवश्यकता होती है। गुरुवाणी हमें सिखाती है कि श्री कृष्ण की लीलाओं को समझना केवल बाहरी घटनाओं को देखना नहीं है, बल्कि इसके पीछे छिपे आध्यात्मिक सत्य को समझना है।

भाई गुरदास जी की वाणी में श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन बहुत सटिकता से किया गया है। भाई गुरदास जी, जो सिख धर्म के महान ज्ञानी और कवि थे, ने उनकी वाणी में श्री कृष्ण के जीवन की घटनाओं का विवरण मिलता है, लेकिन यह विवरण केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अधिक महत्वपूर्ण है। श्री कृष्ण के विद्या गुरु सांदीपनि जी और शस्त्र गुरु दुर्वासा जी थे, इनका पुरातन आश्रम अवंतिका शहर (उज्जैन) में आज भी विलोभनीय रूप से स्थापित है। इस आश्रम में विद्या ग्रहण करते समय उनके बाल सखा सुदामा के साथ निभाई दोस्ती निश्चित ही दोस्ती का पैमाना है। समय अनुसार भगवान श्री कृष्ण द्वारका के द्वारकाधीश कहलाए और उनके अभिन्न मित्र सुदामा एक गरीब ब्राह्मण के रूप में अपने ग्रहस्त जीवन का निर्वाह कर रहे थे। जब दरिद्र सुदामा अपने बाल सखा को मिलने द्वारिका पहुंचे तो भाई गुरदास जी की वाणी का श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती का मार्मिक वर्णन किया है, गुरबाणी का फ़रमान है-
6 : सुदामा भगत
बिप सुदामा दालिदी बाल सखाई मित्र सदाए।
लागू होई बामहणी मिलि जगदीस दलिद्र गवाए।
चलिआ गणदा गटीआँ किउ करि जाईऐ कउणु मिलाए।
पहुता नगरि दुआरका सिंघ दुआरि खलोता जाए।
दूरहूं देखि डंडउत करि छडि सिंघासणु हरि जी आए।
पहिले दे परदखणा पैरी पै के लै गलि लाए।
चरणोदकु लै पैर धोइ सिंघासणु उते बैठाए।
लै कै तंदुल चबिओनु विदा करे अगै पहुचाए।
पुछे कुसलु पिआरु करि गुर सेवा दी कथा सुणाए।
चारि पदारथ सकुचि पठाए ॥1॥

अर्थात सुदामा दरिद्र ब्राह्मण गरीब था, बालक उम्र का (कृष्ण जी का) मित्र था। उसकी ब्राह्मणी (पत्नी) उसके पीछे पड़ी कि तुम द्वारकाधीश जगदीश जी से मिलो, (तुम्हारी) गरीबी दूर हो जाएगी। (मन तो मांगने का नहीं करता था,) पर दिल में विचार करता हुआ सुदामा चल पड़ा कि किस तरह बाल सखा से मुलाकात हो परंतु मुलाकात कौन कराए? जब सुदामा द्वारिका नगरी पहुंचा और राज द्वार पर जाकर खड़ा हो गया तो श्री कृष्ण जी दूर से देखकर सिंहासन छोड़कर आए और उन्हें प्रथम माथा टेका, फिर पहले परिक्रमा की, चरणों में नमस्कार किया, फिर गले से लगा लिया और सिंहासन पर बिठाकर चरण धोए और चरणामृत ग्रहण किया। प्रेम से (फिर) सुख-संवाद पूछा (और) गुरु सेवा की कथा की एवं पुरानी स्मृतियों को उजाला देकर, हम दोनों कैसे गुरु की सेवा किया करते थे? एक साथ भूनें हुए अनाज को लेकर जाते थे, कि भूख लगेगी तो खाएंगे। मैं तो लकड़ियों के लिए घने जंगल में गया था, तुमने पीछे से मेरे भुने हुए चावल के दाने खा लिए थे। जब मेरे लिए नहीं बचे तो मैंने तुमसे नाराज होकर मेरे चावल मांगे थें, क्या तुम मेरे चावल लाए हो? फिर सुदामा ने अपने थैले में से चावल (जो ब्राह्मणी ने भेंट स्वरूप बांध दिए थे) निकाले और कुछ शरमाते हुए ऐसे दिए जैसे बेशकीमती चार प्रकार के पदार्थ दे रहे हों, (जैसे कोई बड़ा उदार व्यक्ति किसी गरीब को एक पैसा देता है)।

भाई गुरदास जी की इस वाणी में श्री कृष्ण की लीलाओं को गुरमुख बनने का साधन बताया गया है। उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण की कथाएं सुनने और समझने वाले लोग अत्यंत भाग्यशाली होते हैं क्योंकि वे ईश्वर के मार्ग पर चलने के योग्य बनते हैं। श्री कृष्ण की लीलाएं आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का साधन हैं, जो व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाती हैं। भाई गुरदास जी ने श्री कृष्ण की लीलाओं को केवल मनोरंजन या चमत्कार दिखाने के साधन के रूप में नहीं देखा, बल्कि उन्होंने इसे आत्मज्ञान और ईश्वर के साथ एकाकार होने का मार्ग बताया है उन्होंने अपनी वाणी में कहा कि जो लोग श्री कृष्ण की लीलाओं को सुनते और समझते हैं, वे जीवन के गहन सत्य को समझ सकते हैं।

गुरुवाणी के समग्र दृष्टिकोण के अनुसार, किसी भी अवतार और उसकी लीलाओं का सार यही है कि वे मनुष्य को ईश्वर की भक्ति और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।गुरुवाणी सिखाती है कि ईश्वर एक है और सभी अवतार उस एक ईश्वर की माया का हिस्सा हैं। चाहे वह श्री कृष्ण हों या राम, गुरुवाणी में सभी को ईश्वर के रूप में माना गया है, जो मनुष्य को धर्म और सत्य का मार्ग दिखाते हैं।
गुरु ग्रंथ साहिब जी की वाणी का फ़रमान है–
एको नामु हुकमु है नानक सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ॥
(श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी अंग 72)
“ईश्वर का नाम ही उसका हुक्म (आदेश) है, नानक कहते हैं! कि सच्चे गुरु ने इसे समझने की शक्ति दी है। इस दृष्टिकोण से, श्री कृष्ण की लीलाएं ईश्वर के उस आदेश का पालन करती हैं, जो हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। श्री कृष्ण की लीलाओं का मर्म, वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में, अत्यंत गहन और मार्मिक है। इन लीलाओं को समझना केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि यह आत्मज्ञान की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। श्री कृष्ण की लीलाएं हमें सिखाती हैं कि धर्म, सत्य, और भक्ति के मार्ग पर चलना ही जीवन का असली उद्देश्य है।
गुरुवाणी और भाई गुरदास जी की वाणी हमें इस बात का एहसास कराती हैं कि श्री कृष्ण की लीलाएं केवल मिथक नहीं हैं, बल्कि वे जीवन के गहनतम सत्य और आध्यात्मिक मार्ग की ओर इशारा करती हैं। इन लीलाओं को आत्मसात कर, हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और ईश्वर की ओर अग्रसर हो सकते हैं।श्री कृष्ण की लीलाओं को समझना और उन्हें अपने जीवन में लागू करना हमें उस परम सत्य की ओर ले जाता है, जो कि ईश्वर है। गुरुवाणी में भी यही संदेश है कि हम अपने जीवन को धर्म और सत्य के मार्ग पर ले जाएं और श्री कृष्ण की लीलाओं का मर्म समझते हुए उसे अपने जीवन में उतारें।

अंत में केवल इतना कहना चाहता हूं कि-

श्री कृष्ण की लीला अनंत, प्रेम का उनका गीत,
गुरुवाणी में गूंजती, जीवन का सच्चा मीत।
माखन चुराकर सिखाया, माया का मर्म गहन,
गोवर्धन उठाकर दिखाया, धर्म ही है जीवन धन।
गोपियों संग रास रचाया, भक्ति का सच्चा ज्ञान,
गीता का संदेश सुनाया, कर्म ही है भगवान।
भाई गुरदास ने गाया, गुरमुख का वो सार,
श्री कृष्ण की लीला में छुपा, मोक्ष का महान द्वार।

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