Sunday, November 2, 2025
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Jharkhand : झारखंड के विधायकों को नहीं मिला राष्ट्रपति का समय, सरना कोड समेत इन बिलों पर करना चाहते थे बात

राष्ट्रपति भवन से महागठबंधन के 50 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल को 1932 खतियान आधारित स्थानीयता विधेयक, आरक्षण बढ़ाने से संबंधित बिल और सरना धर्म कोड के मुद्दे पर मिलने का समय नहीं मिला है। झामुमो के केंद्रीय महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने मंगलवार को पार्टी कार्यालय में पत्रकार वार्ता की। कहा कि चार मार्च को पत्र भेजा गया था। मुलाकात का समय नहीं मिलना आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है। समय की मांग किसी निर्धारित समयावधि के लिए नहीं की गई थी। एक महीने बाद चाहे जब भी समय होता तो बुलाया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु झारखंड की राज्यपाल भी रही हैं। वह हमारे मुद्दों की गंभीरता और गहराई से वाकिफ हैं।

समय नहीं मिलना चिंता का बड़ा विषय: सीएम

मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि झारखंड की माटी से जुड़े स्थानीयता नीति, सरना धर्म कोड, ओबीसी आरक्षण आदि के मुद्दे पर राष्ट्रपति से मिलने की अनुमति नहीं मिल पाई। उन्होंने मंगलवार को कैबिनेट की बैठक के बाद पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए।

सीएम ने कहा कि समय नहीं मिलना चिंता का बड़ा विषय बन गया है। लेकिन, हम इस बात को रखने के लिए प्रयास करते रहेंगे। समय मांगते रहेंगे।

उन्होंने कहा कि एक ओर राजभवन लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार द्वारा पास किये गए विधेयकों को रोक देता है, और दूसरी ओर कम से कम जनहित के मुद्दों पर ऐसा नहीं होना चाहिए था। लेकिन झारखंड को एटीएम समझने वालों भाजपा नेताओं ने ना कभी यहां के आदिवासियों, मूलवासियों एवं आम लोगों को अपना समझा है, ना ही यहां के मुद्दों के प्रति उनमें थोड़ी सी भी गंभीरता है।

सीएए से जुड़े सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति ने इसे 2019 में मंजूरी दे दी थी। यह नया नहीं, पुराना फैसला है। चुनाव को देख कर इसे अभी लागू किया जा रहा है। केंद्र के पास ऐसा कोई काम नहीं है, जिसे जनता को बताए। उन्होंने विधायक अंबा प्रसाद के यहां ईडी की छापेमारी से जुड़े सवाल पर कहा कि इस पर अभी कुछ नहीं कहेंगे।

आदिवासी-मूलवासी, खतियान नीति की विरोधी है हेमंत सरकार पार्ट-2: भाजपा

 भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा पर पलटवार करते हुए कहा कि झामुमो सिर्फ चुनाव के समय आदिवासी, मूलवासी, एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग के लिए घड़ियाली आंसू बहाता है। अगर झामुमो पिछड़ों के आरक्षण के लिए गंभीर था तो उसने पंचायत चुनाव बिना पिछड़ों के आरक्षण के क्यों करवा लिया? नगर निकाय चुनाव भी बिना पिछड़ों को आरक्षण दिए करने की तैयारी थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद ये रुका।

प्रतुल ने कहा कि भाजपा का स्पष्ट मत है कि परंपरा को जीवित रखने वाले आदिवासियों को हक देने के लिए उठाए जाने वाले हर कदम का साथ देगी। झामुमो गठबंधन में कांग्रेस के साथ है। कांग्रेस के एक प्रमुख नेता कार्तिक उरांव ने तो लोकसभा में प्राइवेट मेंबर्स बिल (अनुसूचित जाति जनजाति आदेश संशोधन विधेयक 1967) लाकर धर्म बदलने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को आरक्षण से बाहर करने का प्रस्ताव दिया था। इस मुद्दे पर संसद की संयुक्त समिति की सकारात्मक टिप्पणी के बावजूद इस विधेयक का विरोध करने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने व्हिप तक जारी किया था। उन्होंने कहा कि इस सरकार का एससी समुदाय विरोधी नजरिया इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि पिछले दो वर्षों से इस सरकार के कैबिनेट में एक भी एससी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाला मंत्री मौजूद नहीं है। यह सरकार आदिवासी मूलवासियों को मुख्य धारा से नहीं जोड़ना चाहती है और उन्हें सिर्फ वोट बैंक बनाकर रखना चाहती है। वहीं, भाजपा सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के फार्मूले पर चलती है।

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