समाप्त हो रहे कुएं, बढ़ रहा जल संकट
नदियों पर नहीं लिया गया कोई संज्ञान तो बहुत जल्द डीप बोरिंग भी होने लगेगी फेल, पानी को ले मचेगी त्राहिमाम
सुजेक सिन्हा पत्थलगड़ा/चतरा: करीब एक दशक पहले तक ग्रामीण इलाकों में पानी का मुख्य स्रोत कुआ ही हुआ करती थी। पीने के साथ-साथ सिंचाई के लिए कुआं ही साधन भी थी। हमारी संस्कृति और परंपराओं में कुओं की बड़ी महत्ता थी। मांगलिक कार्यक्रमों में भी कुओं के पास कई आयोजन हुआ करते थें, लेकिन बदलते परिवेश के चलते मौजूदा समय कुएं अंतिम सांसें गिन रहे हैं।
पत्थलगड़ा प्रखंड क्षेत्र के सिंघानी पंचायत समीप हरिजन टोला स्थित लोग एक कुएं जो नदी की छोर पर स्थित है और उसमें भी करीब गहराई की बात करें तो 40 फिट से अधिक बताई जा रही है। नदी के छोर पर होने के बावजूद भी कुआं सुखी पड़ गई है। इस भीषण तपती गर्मी में कुएं के अंदर प्रवेश कर उबछते यानी नीचे से बालू मिट्टी निकाल कर कुछेक दिन ही सही उसे पीने, नहाने-धोने योग्य बनाने का प्रयास ग्रामीण करते नजर आएं। बताते चले की ऐसी हालत जिले के कई क्षेत्रों में देखी जा रही है। जहां कुआं गर्मी आने के साथ ही सुखी पड़ गई है।
तो वहीं कुछ कुओं में पानी तो है, लेकिन इनमें गंदगी के ढेर लगे हैं। हालांकि करीब हर गांव में एक दो कुआं मिल जाएगा, लेकिन जिस तरह से इनकी अनदेखी हो रही है इससे इनका अस्तित्व खतरे में हैं। गांव सिंघानी के हरिजन टोला निवासी निवासी सुरेश भुइयां सहित अन्य का कहना है कि धीरे-धीरे गांवों से कुओं की महत्ता समाप्त होती जा रही है। सुविधाभोगी जनमानस को रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी खींचना अब मुसीबत लगने लगा है। अधिकांश लोग चापाकल व सबमर्सिबल पर निर्भर हो गए हैं।
शहर की बात तो दूर गांव में भी लोग अब नल पर निर्भर होने लगे हैं। अगर कुओं के मिटते अस्तित्व को संजोया नहीं गया तो ये बीते जमाने की बात होगी। उन्होंने बताया कि कुओं का पानी दूसरे स्रोतों के मुकाबले स्वस्थ होता था। कुओं का पानी पीने से बीमारियां मिट जाती थीं, क्योंकि सूरज की किरणें सीधी कुओं के अंदर पड़ती थीं, जो कि पानी को शुद्ध रखने में काफी कारगर होती हैं। कुछ खास मौकों पर सरकार कार्यक्रम आयोजित कर वर्षा के पानी को संचयन करने की बात कहती है। इन बंद होते कुओं को जल संचयन का साधन बनाया जा सकता है।
इसके लिए लोगों को जागृत करने के साथ-साथ प्रशासनिक स्तर पर कार्य किए जाने की जरूरत है। उन्होंने अंत में कहा कि सूखने का मुख्य मुख्य वजह नदी है। क्योंकि बालू उठाव इतना अधिक हो चुकी है कि अब नदी में बालू खोजने से भी नहीं मिल पाएगा। हां कुछ हम सभी ग्रामीणों के वजह से ही नदी के कहीं-कहीं पर जैसे, छठ घाट, अस्मशान घाट में कुछ कंकड़ पत्थर की बालू पड़ी हुई है किंतु वह भी उठाव हो जाती लेकिन हम ग्रामीणों के पहल के कारण ही वहां बंद है और बंद रखी गई है।
और पहले जैसे बरसात के दिनों में बाढ़ नदियां में आती थी वह भी नहीं आ पाएगी। क्योंकि हरेक जगह पर बांध, तालाब का निर्माण हो चुका है। अगर सही बात कही जाए तो जलस्तर नीचे जाने का मुख्य कारण बालू उठाव ही है। जिसके चलते जल स्तर पूरी तरह नीचे जाते जा रहा है। इससे कुआं तो कुआं, डीप बोरिंग तक सुख जा रही है। अगर इस पर सभी लोगों के द्वारा पहल नहीं की गई तो आने वाले दिनों में डीप बोरिंग की भी हालत खराब ही नहीं बद्तर रहेगी। लोग पानी की तलाश में इधर-उधर भटकते दौड़ते नजर आएंगे।
