इचाक में गरीबी भुखमरी व बेरोजगारी का दूसरा नाम इको सेंसेटिव जोन
मामला 186 .25 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 573.86 वर्ग किलोमीटर हुआ दायरा
218 गांव 57387 . 54 हेक्टेयर भूमि इको सेंसेटिव जोन के अधीन
इचाक संवाददाता: इचाक गरीबी भुखमरी लाचारी और बेरोजगारी का दूसरा नाम इको सेंसेटिव जोन है दरअसल हजारीबाग वन आश्रयनी जो मूलत इचाक प्रखंड के सीमा क्षेत्र में स्थित है इसके उत्तर में पदमा प्रखंड दक्षिण और पूर्व में इचाक प्रखंड और पश्चिम में कटकमसांडी प्रखंड है बता दे की नेशनल पार्क का निर्माण 1955 में किया गया था बाद के वर्षों में कुछ पूरी नहीं करने की वजह से इसे हजारीबाग वन आश्रयणी का दर्जा दे दिया गया पर आज यही आश्रयनी यहां के लोगों का गरीबी का कारण भी बन गया है बता दे कि आश्रेयणी के बीच-बीच कई गांव है जो आज भी कई मूलभूत समस्याओं से वंचित है इस गांव के लोगों के लिए जंगली जानवरों का डर बना होता है बिजली और मोबाइल टावर नहीं है
पीडीएस दुकान नहीं है ना पक्की सड़क और ना हीं स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध है ग्रामीणों के मुताबिक सिर्फ एक गांव पहले हैं इको सेंसेटिव जोन के अंदर है लेकिन यह सुविधा विहीन है जब 72 गांव के कुछ हिस्सों का शामिल किया गया था उस समय क्षेत्रफल 186.25 वर्ग किलोमीटर और रकबा 18625. 50 हेक्टेयर था परंतु अब जब 218 गांव को इको सेंसेटिव जोन के अधीन कर लिया गया है तब इसका क्षेत्रफल बढ़कर 573.86 वर्ग किलोमीटर इसका रकबा 57 387.54 हेक्टेयर हो गया। इचाक कटकमसांडी पदमा टाटीझरिया और बरकट्ठा के 218 गांव पूर्ण रूप से इको सेंसेटिव जोन के अधीन कर लिया गया है
अब उन गांव में बेरोजगारी गरीबी और भुखमरी की लंबी तादाद हो गई है क्योंकि इको सेंसेटिव जीवन के अधीन गांव वन विभाग के दायरे के अंदर आते हैं यहां अपनी सुरक्षा सेवा से आप ना तो फैक्ट्री लगा सकते हैं ना घरेलू उपयोग और ना ही पेयजल के लिए नल का निर्माण कर सकते हैं ग्रामीण आरोप लगाते हैं कि वन विभाग और सरकार ने 218 गांव के लोगों के मौलिक अधिकारों को छीन लिया है यही वजह है कि इचाक प्रखंड के डुमरान तिलरा भुसाय सारण थेपया सिझुवा इचाक मोड़ और बोन्गा जो क्रेशर नगरी के नाम से जाने जाता था आज मरुभूमि के समान दिखने लगी है
लोग कहते हैं कि इन्हीं क्रेशर उद्योगों की वजह से इचाक विकसित प्रखंड के रूप से उभरता जा रहा था गरीबी व मध्यम वर्ग के लोग जिन्होंने बैंक और महाजनों से कर्ज लेकर क्रेशर लगाया था उनके सामने पहाड़ से मुसीबत खड़ी हो गई है एक तरफ कर चुकाने की चिंता है तो दूसरी तरफ बच्चों को पढ़ाने की कहीं कई कई को तो बिटिया के हाथ पीले करने की चिंता है कहा कि सरकार इस फैसले से लोगों ने कहा कि उनका भविष्य अंधकार में में हो गया प्रो जयप्रकाश वर्मा का इचाक में कार्यकर्ताओ ने गर्मजोशी से किया स्वागत
